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“TAPAS” Educational Rehabilitation and Research Institute

who are we

Tapas Shekshik Punarwas Evam Anusandhan Sansthan

यभिः शचीभिवृर्षना परा वृज प्रान्ध श्रीण चक्षस एतवे कृथः |
आभिवर्तिका ग्रसितांमन्चतम ताभिरूशु अतिभिर्श्वीना गतम।

समाज में जो भी मूकबधिर, मानसिक विमंदित, नैत्रहीन या किसी भी तरह के दिव्यांगजन है वे तिरस्कार एवं घृणा के पात्र नहीं है हमें उनके साथ मानवीय व्यवहार करना चाहिए और यह मानवीय व्यवहार है उन्हें शिक्षित करना एवं समाज की मुख्य धारा से जोड़ना |

I N T R O D U C T I O N

परिचय

राजस्थान प्रांत के आदिवासी बाहुल्य वागड़ क्षेत्र में विकलांगों वी मंदिर मुखबीर एवं दृष्टिहीन के लिए उचित शिक्षण प्रशिक्षण एवं पुनर्वास जैसी सुविधा की आवश्यकता एक लंबे अरसे से महसूस की जा रही थी समस्या ग्रस्त बालकों के लिए वागड़ क्षेत्र में शिक्षण प्रशिक्षण की व्यवस्था नहीं होने से कई बच्चे शिक्षा से वंचित रह जाते हैं धनी परिवार के छात्रों को पड़ोसी राज्य के विभिन्न संस्थानों में प्रशिक्षण हेतु प्रवेश दिलाया जाता था जहां उन्हें वहां की स्थानीय भाषा में ही प्रशिक्षण दिया जाता है अतः प्रशिक्षण के बाद वापस अपने घर पर यहां की भाषा ना तो बालक स्वयं समझ पाता है और नहीं वह दूसरों को समझा पाता है माता पिता के लिए समस्या ज्यों की त्यों बनी रहती थी इसी समस्या को देखते हुए डूंगरपुर में तपस शैक्षिक पुनर्वास केंद्र की स्थापना की गई |

E S T A B L I S H M E N T

स्थापना

2/92 शिवाजी नगर डूंगरपुर में 7 दिसंबर 2000 को दो छात्राओं के साथ प्रारंभ किया गया |

O B J E C T I V E S

उद्देश्य

वागड़ क्षेत्र के लिए विमंदित, मुख-बधिर तथा दृष्टिहीन छात्र-छात्राओं को उचित साज सामान से मनोवैज्ञानिक पद्धति पर आधारित शिक्षण एवं प्रशिक्षण प्रदान करना |  व्यवसायिक प्रशिक्षण देकर पुनर्वास करना, विकलांग के प्रति समाज में जागृति लाना, समाज की मुख्यधारा से इन्हें जोड़ना, उनमें स्वाबलंबन आत्मनिर्भरता एवं जीविकोपार्जन की क्षमता विकसित करना |

A C T I V I T I E S

गतिविधियां

तपस शैक्षिक पुनर्वास केंद्र में कुल 101 निशक्त छात्र-छात्राओं का पंजीयन किया गया सत्र 2002 से 2003 में कुल 25 छात्र-छात्राओं ने शिक्षा एवं प्रशिक्षण का लाभ उठाया सत्र 2003 से 2004 में 26 जुलाई तक 8 नए प्रवेश दिलाए गए वर्तमान में भी मंदिर एवं वजीर छात्र-छात्राओं को मनोवैज्ञानिक पद्धति पद्धति से विशेष शिक्षण एवं प्रशिक्षण दिया जा रहा है विद्यालय में विशिष्ट प्रशिक्षित शिक्षकों द्वारा विशेष शिक्षण एवं शिक्षण दिया जा रहा है विशिष्ट प्रशिक्षित शिक्षकों द्वारा बालक का मूल्यांकन कर शिक्षा का निर्धारण किया जाता है और उसी के अनुसार एक विशिष्ट शैक्षिक योजना बनाई जाती है जिसमें समय-समय पर परिवर्तन किया जाता है वर्तमान में 8 बालकों के साथ एक अध्यापक कार्यरत है निबंधित बालकों में विद्यमान असामान्य व्यवहार को समाप्त कर मानचित्र व्यवहार को बढ़ावा देना एवं प्रत्येक बालक की आवश्यकता अनुसार कौशल प्रशिक्षण देते हुए लिखना पढ़ना सिखाया जा रहा है बधिर बालकों की उचित श्रवण जांच कर:-

  1. उपयुक्त श्रवण यंत्र दिलाना |
  2. श्रवण प्रशिक्षण द्वारा सुनना |
  3. स्पीच थेरेपी द्वारा बोलना वाणी एवं भाषा विकास के साथ-साथ सामान्य बालकों की तरह लिखना पढ़ना सिखाया जा रहा है।

A C A D E M I C - S E S S I O N

शैक्षणिक सत्र

शैक्षणिक सत्र 2003 से 2004 में विद्यालय को कक्षा तीन स्तर तक क्रमोन्नत किया गया ग्रामीण क्षेत्र के निशक्त बालकों हेतु छात्रावास प्रारंभ किया गया जिसमें 8 छात्रों का प्रवेश दिलाया गया

शिक्षा के साथ-साथ खेलकूद एवं सांस्कृतिक आयोजन –

          भीमंडी बालकों की राज्यस्तरीय प्रतियोगिताओं में संस्थान के छात्रों ने कुल 9 पुरस्कार जीते हैं 3 दिसंबर विश्व विकलांग दिवस के उपलक्ष में चित्तौड़गढ़ में आयोजित सांस्कृतिक प्रतियोगिता में संस्थान के छात्र-छात्राओं ने भाग लिया सामान्य विद्यालय के बच्चों के साथ सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन शैक्षिक भ्रमण ओं का आयोजन वित्त प्रबंधन व्यक्तिगत आर्थिक सहयोग स्वैच्छिक दान एवं चंदा

         नि:शक्त बालकों हेतु संरक्षण तैयार करना- निशक्त जनों के कल्याण और राष्ट्रीय न्यास की कार्य योजना कि जिले में क्रियान्वित ई हेतु जिलाधीश महोदय द्वारा तपस संस्थान को जिम्मा दिनांक 26 जून 2003 की बैठक के अनुसार सौंपा गया जिसके अंतर्गत संस्थान द्वारा जिले भर के 25 निशक्त जनों हेतु संरक्षक तैयार किए गए भविष्य और हम- बच्चे हम से समाज से और शासन से सहयोग एवं सम्मान की अपेक्षा रखते हैं हमारा नैतिक एवं संवैधानिक दायित्व भी है कि हम इन के सर्वांगीण विकास एवं सम्मान हेतु तन मन धन से संकल्प बद्द हो

  1. विद्यालय एवं छात्रावास हेतु भूखंड प्राप्त करना एवं भवन का निर्माण करना|
  2. प्रशिक्षित शिक्षकों की सेवाएं प्राप्त करना|
  3. जन चेतना हेतु विभिन्न शिविरों का आयोजन करना|
  4. निशक्त बालकों को शारीरिक मानसिक स्वास्थ्य एवं चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध करना|
  5. दृष्टिहीन बालकों के लिए शिक्षण एवं प्रशिक्षण सुविधा उपलब्ध कराना एवं शिक्षण सामग्री एवं उपकरण उपलब्ध कराना|
  6. व्यवसायिक प्रशिक्षण केंद्र प्रारंभ करना|
  7. परामर्श केंद्र सूचना केंद्र एवं रोजगार केंद्र का गठन व संचालन कराना|

         हम इस पुनीत लक्ष्य को प्राप्त कर सके इसके लिए आपके मार्गदर्शन सुझाव व सहयोग की अपेक्षा के साथ आपका थोड़ा सा योगदान इन बच्चों का जीवन बदलने में सहयोग कर सकता है

                     परहित सरिस धर्म नहिं भाई | चाहे हम ने लाखों मंदिर – मस्जिद बनवाई ||

                      डूंगरपुर में हमने वागड़ के दिव्यंगो, निर्बलों के लिए “तपस” संस्था बनाई ||

           जिस प्रकार हम लाखों मंदिर और मस्जिद बनाते हैं एवं बनाते आ रहे हैं उनको बनाने से जितना पुण्य लाभ नहीं मिलता उतना इन बिक्लो एवं निर्मलो बच्चों के लिए विकास हेतु दान पुण्य करना महान पुण्य कार्य होता है भगवान की सेवा पूजा मात्र से ही भगवान या भगवान के दर्शन नहीं मिलते वरन इन भगवान रूपी बिक्लो एवं निर्मल की विभिन्न प्रकार से सेवा सहायता करके हम ईश्वर को प्राप्त कर सकते हैं।

           बधिर एवं मंदबुद्धि बालक की शिक्षा प्रशिक्षण तथा आवास में आप भी सहयोग कर सकते हैं:-

  1. एक एक रुपया प्रतिदिन दानदाता सदस्य बंद कर|
  2. एक छात्र बालक की विद्यालय पोशाक सिल्वा कर|
  3. एक छात्र को पाठ्यपुस्तक के दिलवा कर|
  4. एक बालक को शिक्षण सामग्री कॉपिया पेन पेंसिल आदि दिलवाकर|
  5. एक कक्षा कक्ष में पंखा लगवा कर|
  6. कक्षा का फर्नीचर बनवा कर|
  7. एक बालक को सुनने की मशीन दिलवा कर|
  8. छात्रावास के लिए बिस्तर चादर कंबल आदि दिलवाकर|
  9. छात्रावास की बालकों के भोजन व चिकित्सा व्यवस्था के लिए दान देकर|
  10. मासिक वार्षिक चंदा देकर|
  11. आवास खर्च हेतु 1 वर्ष के लिए धर्म माता-पिता बनकर|
  12. शैक्षणिक खर्च देकर 1 वर्ष के लिए धर्म माता-पिता बन कर|
  13. एक कक्षा के लिए सहायक सामग्री दिलवाकर|
  14. खेल सामग्री दिलवाकर|
  15. विद्यालय हेतु स्टेशनरी दिलवाकर|
  16. अलमारी पलंग आदि दिलवाकर|
  17. एक गरीब बालक का 1 वर्ष का टेंपो भाड़ा दिला कर।